दिल्ली की भोली-भाली मुख्यमंत्री शीला दीक्षित शायद जनता को बेवकूफ समझती हैं तभी तो जब कांग्रेस और बच्चन परिवार की कड़वाहट सामने आई तो शीला जी ने अपना दामन पाक साफ बताने के चक्कर में चालाकी दिखाते हुए बड़ी सफाई से कह दिया कि उन्हें अभिषेक के ब्रैंड अम्बेसडर होने की खबर नहीं थी....लेकिन शीला जी हम आपको याद दिला दें कि इसी महिने के शुरूआत में दिल्ली में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था जिसमें अभिषेक बच्चन बतौर ब्रैंड अम्बेसडर दिल्ली वासियों से अर्थ ऑवर के दौरान बिजली बंद रखने के लिए अपिल कर रहे थे और सबसे अहम बात ये कि उस कार्यक्रम में मंच पर आप भी अभिषेक के साथ दिल्ली वासियों से यही अपिल कर रही थीं......क्या तब भी अपको ये नहीं पता था कि अभिषेक उस कार्यक्रम में वहां क्यों मौजुद थें....?
Sunday, March 28, 2010
और कितनी बातों से अनजान हैं आप...?
दिल्ली की भोली-भाली मुख्यमंत्री शीला दीक्षित शायद जनता को बेवकूफ समझती हैं तभी तो जब कांग्रेस और बच्चन परिवार की कड़वाहट सामने आई तो शीला जी ने अपना दामन पाक साफ बताने के चक्कर में चालाकी दिखाते हुए बड़ी सफाई से कह दिया कि उन्हें अभिषेक के ब्रैंड अम्बेसडर होने की खबर नहीं थी....लेकिन शीला जी हम आपको याद दिला दें कि इसी महिने के शुरूआत में दिल्ली में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था जिसमें अभिषेक बच्चन बतौर ब्रैंड अम्बेसडर दिल्ली वासियों से अर्थ ऑवर के दौरान बिजली बंद रखने के लिए अपिल कर रहे थे और सबसे अहम बात ये कि उस कार्यक्रम में मंच पर आप भी अभिषेक के साथ दिल्ली वासियों से यही अपिल कर रही थीं......क्या तब भी अपको ये नहीं पता था कि अभिषेक उस कार्यक्रम में वहां क्यों मौजुद थें....?
Tuesday, March 23, 2010
शहादत की याद
२३ मार्च, भारतीये इतिहास का वो दिन जिस दिन देश के तीन बहादुर सिपाहियों को अंग्रेजों ने फांसी दे दी और वो तीन देश के बहादुर सिपाही हैं, शहीद भगत सिंह, शहीद राजगुरु और शहीद सुखदेव..... वही तीन क्रन्तिकारी जिन्होंने अपनी सारी खुशियाँ त्याग कर अपनी पूरी जिन्दगी अपने देश के नाम कर दी, इस उम्मीद में की शायद उनकी शहादत उनके वतन को आज़ादी दिलाने में मदद करे। फिर एक दिन उनकी शहादत रंग लायी और हमारा वतन आज़ाद हो गया । आज़ादी के रूप में हिंदुस्तान को एक नयी जिंदगी मिली । फिर क्या था ये आज़ाद परिंदा उड़ चला दूर तक फैले फलक में । आज इस परिंदे ने काफी ऊँचाई छू ली है लेकिन विडम्बना ये है की शायद आज ये भूल गया है कि इसकी ये आज़ादी किसी के बलिदान के बाद मिली है । तो क्या बलिदान देने वाले आज इतना भी हक नहीं रखते कि उनकी शाहदत कम से कम याद रखी जाये ? कहते हैं ..........
" शहीदों की चिताओं पर
लगेगें हर बरस मेले
वतन पर मिटने वालों का
यही बाकि निशान होगा "
पर अब ये लाईने शायद किताबों के पन्नों पर ही रह गयीं है तभी तो हम अपनी जिंदगी की दौड़ में इतने खो गए हैं कि उन्हें याद करने का भी वक़्त नहीं है जिनकी वजह से आज हम आज़ाद वतन में सांसें ले रहे हैं । एक तरफ जहाँ सरकार ने मात्र एक छोटा सा विज्ञापन देकर अपना फ़र्ज़ पूरा करती नज़र आई वही दूसरी तरफ अखबार वाले भी अखबार के एक कोने में विज्ञापन को छापकर अपने उत्तरदायित्व से मुक्त हो गएँ । इस विज्ञापन का भी सफ़र पहले पन्ने से शुरू होकर आज आखरी पन्ने तक पहुँच गया है। किसी चैनल ने याद भी किया तो बड़ी मुश्किल से अपने टाइम स्लॉट से महज़ कुछ मिनट ही निकाल कर दियें क्योंकि उनका ये प्रोडक्ट बिकता नहीं न । और बिकता नहीं तो फिर टीआरपी ऊपर कैसे जाती ....... खैर देशभक्तों की देशभक्ति तो तब और निखर कर सामने आई जब पंजाब में कुछ देशभक्तों ने एक समारोह आयोजित कर हाथों में तिरंगा लहराते हुए शहीदों को याद तो किया लेकिन समारोह ख़त्म होने पर उनकी असली देशभक्ति सामने आई जब उनके हाथों के तिरंगे ज़मीन पर धुल फांकते नज़र आयें ...... वतन की शान टुकड़ों में कुचली ज़मीन पर बिखरी अपनी आखिरी साँसे ले रही थी । आज लोग न सिर्फ इन शहीदों की शहादत भूल गएँ बल्कि लोगों के लिए इन शहीदों की शहादत मात्र एक मजाक बन कर रह गयी है.....
Thursday, March 18, 2010
रेंगती जिन्दगी
Wednesday, March 17, 2010
माया की माला में दुर्लभ फूल
ये बयान है बीएसपी का...वही बीएसपी जिसकी कमान संभाल रखी है बहन जी ने...लखनऊ में बसपा की महारैली के दौरान जब पार्टी कार्यकर्ताओं ने “महामहिम माया” को माला पहनाया तो चारो ओर माला की जबरदस्त चर्चा छिड़ गई...ये चर्चा इतनी गूंजी कि इसकी गूंज ना सिर्फ विधानसभा में सुनाई दी बल्कि इस चर्चा ने विधानसभा में हंगामा का रूप भी अख्तियार कर लिया.....और तब बचाव खेमे के नेताओं का ये एतिहासिक बयान आया कि बहन जी के गले में डाली गई स्वागत माला नोटों की नहीं बल्कि दुर्लभ फूलों से बनाई गई थी.....सच हीं तो है.....ये माला आखिरकार “दुर्लभ फूलों” से हीं तो बनी थी.....उन्हीं “दुर्लभ फूलों ” से जो आम जनता के लिए सच में दुर्लभ है....ये वही दुर्लभ फूल हैं जो आम आदमी के खून पसीने की मेहनत के बाद खिल कर आते हैं लेकिन इसके बावजूद आम जनता का इस पर कोई हक नहीं है.... आखिर आम जनता के लिए हज़ार-हज़ार के ये नोट दुर्लभ फूल हीं तो हैं जो केवल मायावती सरिखे महामहिमों की हीं पहुंच में हैं....महंगाई के इस दौर में आम आदमी के लिए तो इन फूलों के दर्शन भी दुर्लभ हैं.....जिन फूलों पर जनता का हक होना चाहिए था और जिसका इस्तेमाल समाज के विकास के लिए करना चाहिए था उन्हीं फूलों को दुर्लभ बताकर हार गले में एक बार नहीं बल्कि दो दो बार सजाकर जनता के इन सेवकों ने जनता को ये एहसास जरूर करा दिया है कि उन्हें जनता की कितनी फिक्र है....दलितों के उत्थान का दम भरने वाली माया के गले में सजी नोटों की ये माला आम जनता को चीख चीख कर जरूर चिढ़ा रही है कि ये दुर्लभ फूल उनके लिए सच में दुर्लभ है....