२३ मार्च, भारतीये इतिहास का वो दिन जिस दिन देश के तीन बहादुर सिपाहियों को अंग्रेजों ने फांसी दे दी और वो तीन देश के बहादुर सिपाही हैं, शहीद भगत सिंह, शहीद राजगुरु और शहीद सुखदेव..... वही तीन क्रन्तिकारी जिन्होंने अपनी सारी खुशियाँ त्याग कर अपनी पूरी जिन्दगी अपने देश के नाम कर दी, इस उम्मीद में की शायद उनकी शहादत उनके वतन को आज़ादी दिलाने में मदद करे। फिर एक दिन उनकी शहादत रंग लायी और हमारा वतन आज़ाद हो गया । आज़ादी के रूप में हिंदुस्तान को एक नयी जिंदगी मिली । फिर क्या था ये आज़ाद परिंदा उड़ चला दूर तक फैले फलक में । आज इस परिंदे ने काफी ऊँचाई छू ली है लेकिन विडम्बना ये है की शायद आज ये भूल गया है कि इसकी ये आज़ादी किसी के बलिदान के बाद मिली है । तो क्या बलिदान देने वाले आज इतना भी हक नहीं रखते कि उनकी शाहदत कम से कम याद रखी जाये ? कहते हैं ..........
" शहीदों की चिताओं पर
लगेगें हर बरस मेले
वतन पर मिटने वालों का
यही बाकि निशान होगा "
पर अब ये लाईने शायद किताबों के पन्नों पर ही रह गयीं है तभी तो हम अपनी जिंदगी की दौड़ में इतने खो गए हैं कि उन्हें याद करने का भी वक़्त नहीं है जिनकी वजह से आज हम आज़ाद वतन में सांसें ले रहे हैं । एक तरफ जहाँ सरकार ने मात्र एक छोटा सा विज्ञापन देकर अपना फ़र्ज़ पूरा करती नज़र आई वही दूसरी तरफ अखबार वाले भी अखबार के एक कोने में विज्ञापन को छापकर अपने उत्तरदायित्व से मुक्त हो गएँ । इस विज्ञापन का भी सफ़र पहले पन्ने से शुरू होकर आज आखरी पन्ने तक पहुँच गया है। किसी चैनल ने याद भी किया तो बड़ी मुश्किल से अपने टाइम स्लॉट से महज़ कुछ मिनट ही निकाल कर दियें क्योंकि उनका ये प्रोडक्ट बिकता नहीं न । और बिकता नहीं तो फिर टीआरपी ऊपर कैसे जाती ....... खैर देशभक्तों की देशभक्ति तो तब और निखर कर सामने आई जब पंजाब में कुछ देशभक्तों ने एक समारोह आयोजित कर हाथों में तिरंगा लहराते हुए शहीदों को याद तो किया लेकिन समारोह ख़त्म होने पर उनकी असली देशभक्ति सामने आई जब उनके हाथों के तिरंगे ज़मीन पर धुल फांकते नज़र आयें ...... वतन की शान टुकड़ों में कुचली ज़मीन पर बिखरी अपनी आखिरी साँसे ले रही थी । आज लोग न सिर्फ इन शहीदों की शहादत भूल गएँ बल्कि लोगों के लिए इन शहीदों की शहादत मात्र एक मजाक बन कर रह गयी है.....
pura artical toh achha hai. but ye chand line mere dil ko chhu gai....
ReplyDeleteतिरंगे ज़मीन पर धुल फांकते नज़र आयें ...... वतन की शान टुकड़ों में कुचली ज़मीन पर बिखरी अपनी आखिरी साँसे ले रही थी । आज लोग न सिर्फ इन शहीदों की शहादत भूल गएँ बल्कि लोगों के लिए इन शहीदों की शहादत मात्र एक मजाक बन कर रह गयी है.....very nice
सशक्त लेखन... बहुत ही उम्दा लेख.... सही फरमाया आपने एक तरफ सरकार और मीडिया ने इन शहीदों को जैसे-तैसे याद किया और बाकी का काम आम जनता ने राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करके किया... सच्चाई ये है कि हम अपने आप में जीना चाहते हैं... हमें देश से कोई मतलब नहीं... देश कैसे आज़ाद हुआ... कौन कब शहीद हुआ हमें उससे क्या लेना....
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