“Lets feel the pain”……वाराणसी धमाके के बाद आतंकी संगठन इंडियन मुज़ाहिद्दीन की ओर से भेजी गई मेल के वो शब्द जो साफ तौर पर आतंकियों के नापाक मनसूबे की ओर इशारा करती है...इस मेल के जरिए इन आतंकियों ने तो ये जताने की कोशिश की है कि उनके साथ बहुत बड़ी नाइंसाफी हुई है और वो इसका बदला लेने चाहते हैं...लेकिन क्या आतंकियों के पास इस बात का जवाब है कि वाराणसी में बम धमाका कर उन्होंने किससे बदला लिया है...? जो लोग इस धमाके में घायल हुए और जो इस धमाके के बाद अपने परिजनों से बिछड़ गएं क्या वो इन आतंकियों के दोषी हैं..? क्या 2 साल की मासूम स्वास्तिका उनकी गुनहगार थी जिसने दुनिया में महज़ दो साल पहले ही कदम रखा था....जिसे इतना भी नहीं पता था कि दुनिया क्या होती है, दुनिया कहते किसे हैं, धर्म, जात-पात क्या होता है... इस नन्हीं सी जान को मारकर आतंकियों के दिल को ठंडक मिल गई..? क्या ये मासूम गई थी उनकी मस्जिद तोड़ने ? या फिर वाराणसी के घाट पर आरती करते वो तमाम लोग मस्जिद पर धावा बोलने गएं थें...? क्या मस्जिद के विध्वंस के असली गुनहगार ये लोग हीं थें जिन्हें घायलकर और धमाके में उड़ाने की साजिशकर इन आतंकियों को इंसाफ मिल गया...?
इन सब के बीच ये दहशतगर्द ये भूल गएं कि जिस दर्द का एहसास वो कराना चाहते थें वो दर्द किसी एक मज़हब के लोगों ने नहीं बल्कि पूरे हिन्दूस्तान के लोगों ने महसूस किया...चाहे वो हिंदू हो, मुस्लिम हो, सिख हो, इसाई हो या फिर कोई और मज़हबी...देश के सौहार्द तोड़ने की कोशिश करने वाले ये दहशतगर्द ये अच्छी तरह से जानते हैं कि धर्म की आड़ में वो जिन लोगों को ये दर्द महसूस कराना चाहते हैं उन लोगों ने बाबरी विध्वंस के दर्द को भी उसी तरह महसूस किया था जितना कि वो आज वनारस धमाके के दर्द को महसूस कर रहे हैं...लेकिन इस सच्चाई को जानते हुए भी आतंकियों ने इस घटना को अंज़ाम दिया...वजह बिल्कुल साफ है...दरअसल इन आतंकियों का न तो कोई धर्म है, न कोई मज़हब और न ही ये कोई धर्म युद्ध लड़ रहे हैं...इनके नापाक मंसूबे तो बस दहशत फैलाना है...अगर ये आतंकी सच में कोई नेक काम कर रहे होते तो ये पाकिस्तान को आए दिन धमाकों के ज़ख़्म न देते...ये दहशतगर्द अपने नापाक इरादों और बेतुके दलीलों से लोगों को महज़ गुमराह कर रहें हैं....