Wednesday, December 8, 2010

"Lets feel the pain" की सच्चाई


“Lets feel the pain”……वाराणसी धमाके के बाद आतंकी संगठन इंडियन मुज़ाहिद्दीन की ओर से भेजी गई मेल के वो शब्द जो साफ तौर पर आतंकियों के नापाक मनसूबे की ओर इशारा करती है...इस मेल के जरिए इन आतंकियों ने तो ये जताने की कोशिश की है कि उनके साथ बहुत बड़ी नाइंसाफी हुई है और वो इसका बदला लेने चाहते हैं...लेकिन क्या आतंकियों के पास इस बात का जवाब है कि वाराणसी में बम धमाका कर उन्होंने किससे बदला लिया है...? जो लोग इस धमाके में घायल हुए और जो इस धमाके के बाद अपने परिजनों से बिछड़ गएं क्या वो इन आतंकियों के दोषी हैं..? क्या 2 साल की मासूम स्वास्तिका उनकी गुनहगार थी जिसने दुनिया में महज़ दो साल पहले ही कदम रखा था....जिसे इतना भी नहीं पता था कि दुनिया क्या होती है, दुनिया कहते किसे हैं, धर्म, जात-पात क्या होता है... इस नन्हीं सी जान को मारकर आतंकियों के दिल को ठंडक मिल गई..? क्या ये मासूम गई थी उनकी मस्जिद तोड़ने ? या फिर वाराणसी के घाट पर आरती करते वो तमाम लोग मस्जिद पर धावा बोलने गएं थें...? क्या मस्जिद के विध्वंस के असली गुनहगार ये लोग हीं थें जिन्हें घायलकर और धमाके में उड़ाने की साजिशकर इन आतंकियों को इंसाफ मिल गया...?

इन सब के बीच ये दहशतगर्द ये भूल गएं कि जिस दर्द का एहसास वो कराना चाहते थें वो दर्द किसी एक मज़हब के लोगों ने नहीं बल्कि पूरे हिन्दूस्तान के लोगों ने महसूस किया...चाहे वो हिंदू हो, मुस्लिम हो, सिख हो, इसाई हो या फिर कोई और मज़हबी...देश के सौहार्द तोड़ने की कोशिश करने वाले ये दहशतगर्द ये अच्छी तरह से जानते हैं कि धर्म की आड़ में वो जिन लोगों को ये दर्द महसूस कराना चाहते हैं उन लोगों ने बाबरी विध्वंस के दर्द को भी उसी तरह महसूस किया था जितना कि वो आज वनारस धमाके के दर्द को महसूस कर रहे हैं...लेकिन इस सच्चाई को जानते हुए भी आतंकियों ने इस घटना को अंज़ाम दिया...वजह बिल्कुल साफ है...दरअसल इन आतंकियों का न तो कोई धर्म है, न कोई मज़हब और न ही ये कोई धर्म युद्ध लड़ रहे हैं...इनके नापाक मंसूबे तो बस दहशत फैलाना है...अगर ये आतंकी सच में कोई नेक काम कर रहे होते तो ये पाकिस्तान को आए दिन धमाकों के ज़ख़्म न देते...ये दहशतगर्द अपने नापाक इरादों और बेतुके दलीलों से लोगों को महज़ गुमराह कर रहें हैं....

Saturday, November 20, 2010

वादियों में रंग बिखेरता पतझड़








































खाली, सूनी टहनियां और सूखे, बेजान पत्ते...इन तस्वीरों को देखकर मौसम की पहचान करना कोई मुश्किल बात नहीं है...इन सूने पड़े उदास पेड़ों को देखकर कोई भी आसनी से अंदाज़ा लगा सकता है कि ये निशानी पतझड़ की है...वो पतझड़ जिसके आते हीं पेड़ों से फूल नदारद हो जाते हैं और हरे-भरे पत्ते टहनियों से अलग होकर ज़मीन की ओर अपने आखिरी पड़ाव की तरफ बढ़ चलते हैं...इस मौसम के आते हीं हर वक्त गुलज़ार रहने वाले पेड़ों पर विरानी छा जाती है...पेड़ों की इस विरानी से माहोल में भी उदासी भर जाती है...लेकिन कश्मीर की इन वादियों के लिए तो पतझड़ का मतलब ही कुछ और है...कहते हैं धरती के इस स्वर्ग पर पतझड़ जब अपने कदम रखता है तो ये चेतावनी होती है आने वाले उस सर्द मौसम की जिसकी जबर्दस्त ठंडक हर चीज को कपा कर रख देती है...लेकिन घाटी में दस्तक देता ये पतझड़ अपने साथ इस चेतावनी के अलावा भी कुछ और भी लाता है...जी हैं ये पतझड़ जब कश्मीर की वादियों में कदम रखता है तो पूरी वादी एक अनोखी खूबसूरती के साथ खिल उठती है...ऐसा लगता है मानो धरती के इस स्वर्ग को किसी ने पारस पत्थर से छू दिया हो...वादी का हर कोने सुनहरे रंग में रंग जाता है...पतझड़ के इस मौसम में अपने आखिरी पड़ाव पर पहुंचकर चिनार के ये सूखते पत्ते भी वादियों में कई रंग बिखेर देते हैं...कश्मीर में पतझड़ की इस अनोखी खुबसूरती को देखने वाला हर इंसान इस अनुपम खबुसूरती का कायल हो जाता है और दुनिया से ये गुज़ारिश करता है कि वो प्रकृति की इस अनुपम छठा का एक बार ज़रूर दीदार करे...

कश्मीर में पतझड़ का ये मौसम सितंबर से लेकर दिसंबर के महिने तक रहता है...इस दौरान ये मौसम न सिर्फ चिनार के पत्तों में सुनहरा रंग भरता है बल्कि पूरी वादी पर अपनी रंगीन कूची चलकर एक मनमोहक तस्वीर भी उकेरता है...वादियों में पतझड़ की उकेरी ये तस्वीर इतनी खूबसूरत होती है कि पर्यटक सहज ही इस ओर खींचे चले आते हैं...कश्मीर में प्रकृति के इस अनोखे रंग को देखकर दिल खुद-ब-खुद इस बात को दुहराने लगता है कि अगर धरती पर कहीं स्वर्ग है तो वो इन्हीं खूबसूरत वादियों में है जहां पतझड़ भी आकर इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा जाता है....






Monday, September 6, 2010

सस्ती वर्दी की जान


बिहार के लखीसराय में पहले नक्सलियों के हाथों पुलिसऔर बीएसएफ जवानों का कत्लेआम और फिर 4 पुलिसवालों को बंधक बनाया जाना...इस घटना ने सिर्फप्रदेश सरकार की लाचारी को उजागर किया बल्कि ये भीसाबित कर दिया कि वर्दी की जान की कोई कीमत नहींहोती...जो जवान अपनी जान पर खेल कर सिर्फ आमजनता बल्कि तमाम नेताओं को भी नक्सलियों की बुरीनज़र से बचाते हैं उनके ही इस बलिदान और सेवा का कोईमोल नहीं है॥प्रदेश के लखीसराय में नक्सलियों के हाथोंपुलिसकर्मियों के अपह्त किए जाने से सिर्फ चारपरिवार की खुशियां दांव पर लगी थी बल्कि नक्सलियों के इस दुस्साहस से देश भर के लोगों की सांसें भी अटकीथी..जिस वक्त प्रदेश की जनता और अपह्त पुलिसकर्मियों के परिजन मुख्यमंत्री से मदद की गुहार लगा रहे थें वहीऐसे मुश्किल वक्त में प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को चिंता तो सता रही थी लेकिन नक्सलियों की बंदूक कीनोंक पर खड़े अपह्त पुलिसकर्मियों की नहीं बल्कि आगामी विधानसभा चुनाव में अपनी कुर्सी बचाने की...तभी तोनक्सलियों के इस कुकर्म के खिलाफ जहां कड़ी कार्रवाई किए जाने की जरूरत थी वहां मुख्यमंत्री चुनाव के दौरानअपनी पार्टी की पैठ जमाने के लिए आम सभा को संबोधित करने में व्यस्त थे...इतना ही नहीं अपह्तपुलिसकर्मियों के मामले में मुख्यमंत्री ने मुंह तो खोला लेकिन चार दिनों बाद...चार दिन बीत जाने पर जब मुंहखोला तो बड़ी आसानी से अपनी लाचारी जताते हुए शर्मनाक बयान दिया किमेरे घर के आगे धरना देने से क्याहोगा ? किसी के हाथों में कुछ भी नहीं है,जो है वो उनके(नक्सलियों के)हाथों में है ”... इसके अलावा अपनी सफाईदेते हुए लोकतंत्र के कायदे-कानून की पट्टी भी पढ़ा दी...इधर नक्सलियों को जब लगा कि उनके फेंके पासे काअसर नहीं हो रहा तो उन्होंने दावा कर दिया कि अपह्त अभय यादव को मार डाला गया है...नक्सलियों के इस दावेको सुनकर मुख्यमंत्री ने ऐलान कर दिया कि वो नक्सलियों से बातचीत के लिए तैयार हैं...जनता को लगा कि चलोशायद नीतीश जी को इन अपह्त पुलिसकर्मियों की चिंता तो हुई...लेकिन..सच तो ये है कि उनकी ये चिंता अपह्तपुलिसकर्मियों के लिए कम बल्कि खुद के लिए ज्यादा थी...क्योंकि नक्सलियों ने अभय को मारने का दावा करनेके अलावा मुख्यमंत्री आवास को उड़ाने की धमकी जो दी थी...बस फिर क्या था आनन-फानन में कार्रवाई कीगई..लेकिन ये कार्रवाई अपह्तों को छुड़ाने के लिए नहीं बल्कि मुख्यमंत्री और उनके आवास को बचाने के लिए कीगई...इस कार्रवाई के तहत फौरन मुख्यमंत्री के आवास की सुरक्षा कड़ी कर दी गई...इसके बाद नक्सलियों ने खुदको जुबां का पक्का साबित करने के लिए किया कत्ल...इन नक्सलियों ने एक अपह्त को मारने के दावे को सचसाबित किया...लेकिन...दरोगा अभय की जगह हवलदार लुकस टेटे को उतारा मौत के घाट..इतना होने के बाद भीनीतीश कुमार मुस्कुराते रहे और कार्रवाई करने का झूठा भरोसा दिलाते रहे...इसके बाद नक्सलियों के इस हाइटेकड्रामे की अवधी बढ़ी और इस ड्रामे में ट्रविस्ट लाते हुए अपह्त अभय यादव की पत्नी को बहन कहा और उसके घरआकर राखी बंधवाई...आखिरकार आठ दिन बीत जाने पर नक्सलियों ने अपने इस ड्रामे का पर्दा गिराया और बाकिके 3 अपह्त पुलिसकर्मियों को रिहा कर दिया...जाहिर है ये खुशी का बात थी और ऐसे खुशी के मौके पर प्रदेश केमुख्यमंत्री ने अपनी खुशी जाहिर करते हुए कहा- “ अंत भला तो सब भला”... मुख्यमंत्री के इस बयान से साफजाहिर हुआ कि बंधकों की रिहाई से उन्हें काफी राहत मिली...राहत तो मिलनी ही थी...आवास के बाहर बंधकों केपरिजनों के धरने से मुख्यमंत्री जी को सभाओं में आने जाने में परेशान जो हो रही थी...तभी तो बंधकों की रिहाई सेपहले इस मामले में अपनी लाचारी जताने वाले नीतीश कुमार बंधकों की रिहाई के बाद सीना तानकर मीडिया केसामने आएं और बंधकों को छुड़ाने का श्रेय लेते हुए पुलिसकर्मियों और राजनीतिक दलों का धन्यवाददिया...लेकिन नीतीश कुमार ने ये नहीं बताया कि कौन सी राजनीति पार्टी ने क्या-क्या मदद की....मुख्यमंत्री तोशायद ये भी भूल गएं कि जिस वक्त बिहार में इतनी बड़ी समस्या खड़ी थी, 4 जिन्दगियां दांव पर लगी थी उस वक्तएक राजनीतिक दल का युवराज बिहार में ही अपने राजनीतिक दौरे में व्यस्त था...युवराज हीं नहीं खुद मुख्यमंत्रीभी चुनाव के सिससिले में सभाओं को संबोधित कर वोटरों को लुभाने में व्यस्त थें....फिर ये धन्यवाद जाने कौन सीराजनीतिक पार्टी के लिए थी...जहां एक ओर प्रदेश सरकार ये दावे करने से पीछे नहीं हटी कि बंधकों को छुड़ाने मेंउन्होंने अपनाअनमोलयोगदान दिया है वहीं दूसरी ओर नक्सलियों ने सरकार के इस दावे को ढकोसला बतातेहुए कहा कि उन्होंने बंधकों को उनके परिजनों और लोगों के अपील की वजह से रिहा किया...बहरहाल आठ दिनतक चले नक्सलियों के इस ड्रामे में जहां एक परिवार की खुशियां उजड़ गई वही इस घटना पर मुख्यमंत्री के रवैयेने ये बखुबी साबित कर दिया कि उनकी और आम जनता की सुरक्षा के लिए जिम्मेवार इन पुलिसकर्मियों की जानकी कीमत कुछ भी नहीं....

Saturday, August 14, 2010

जश्न-ए-आज़ादी




15 अगस्त, यानि आज़ादी का वो जश्न जिसे पूरा हिन्दुस्तान हर साल जोश के साथ मनाता है…ये वो दिन है जब 1947 में भारत ने गुलामी की बेड़ियों को तोड़कर आज़ादी की सांस ली थी...आज़ाद आबो हवा की सांस में इतनी ताजगी भरी थी कि देश के दिल में उमंग भर गई और हिंदुस्तान ने ठाना कि वो अब अपने सिद्धांतों पर ही आगे बढ़ेगा..अपने फैसले खुद लेगा और अपनी मंजिल खुद ही तय करेगा...इसी जोश और उमंग के साथ पूरा हिंदूस्तान विश्व के मानस पटल पर एक नई तस्वीर उकेरने के सपने लिए आगे बढ़ चला...आज़ाद हिंद के इस जोश ने देश में कई बदलाव भी लाएं...हिन्दुस्तान के पास अब अपना खुद का लिखा संविधान भी आ गया...एक ऐसा संविधान जिसमें दिखी एक आदर्श और आज़ाद भारत की कई झलकियां, जिसकी तारिफ विश्वभर ने की...ये संविधान इतना अनूठा है कि लिखने के साथ ही इसने इतिहास रच दिया...गुलामी के जख्मों को भरने के इरादे से और एक कीर्तिमान स्थापित करने के मकसद से आज़ाद भारत अपनी आंखों में हज़ारों सपने लिए बढ़ चला अपनी मंजिल की ओर...जाहिर है जब कोई नेक इरादों से मंजिल की ओर कदम बढ़ता है तो उसकी राह रोकने वाले भी उसके साथ ही चलते हैं...कुछ ऐसा ही हुआ भारत के साथ भी...मंजिल तक पहुंचने से पहले ही आज इसके कदम लड़खड़ा रहे हैं...देश के ही कुछ वासी आज अपने भारत के दुश्मन बन बैठे हैं, जो न सिर्फ देश के कदमों को आगे बढ़ने से रोक रहे हैं बल्कि अपने नापाक इरादों से देश के सपने को तोड़ेने में भी लगे हैं...जहां एक ओर ये देशद्रोही भ्रष्टाचार का सहारा लेकर देश को अंदर से खोखला करने में लगे वही दूसरी ओर ये धरती के स्वर्ग और भारत की शान में नफरत का ज़हर घोलकर पूरी घाटी को हिंसा की आग में झोंक रहे हैं...इतना ही नहीं देश के ये सौदागर अपने स्वार्थ को पूरा करने लिए देश की इज्जत तक को बेचने के लिए तैयार खड़े हैं...आज तस्वीर ये है कि एक ओर देश में नक्सली नासूर बनकर देश को आए दिन जख़्म पर जख़्म दिए जा रहे हैं, आतंकी अपने नापाक मनसूबे लिए देश में अपनी पैठ जमा रहे है, दूसरों के बहकावे में आकर भाई भाई को मार रहा है और देश के ही भ्रष्ट खद्दरधारी देश को लूटने में लगे हैं...इन तमाम मुसिबतों के अलावा भी की अन्य समस्याएं हैं जो देश की विकास की राह में रोड़े अटका रही हैं...लेकिन ऐसे जरूरत के समय में भी देशवासी एक दूसरे का साथ देने की जगह एक दूसरे के लिए नफरत लिए आपस में लड़ने में व्यस्त हैं...ऐसे में आज़ादी के इस जश्न को दिल से मनाने के लिए जरूरत है पूरे देशवासियों के दिल से एकजुट होने की ताकि ये जश्न महज़ एक औपचारिकता और दिखावा न बनकर रह जाए...आज़ाद भारत को इंतज़ार है उस 15 अगस्त का जब पूरा देश महज़ जुबां से नहीं बल्कि सच्चे दिल से ये नारा लगाएगा....’वंदे मातरम्’....

Thursday, May 6, 2010

फांसी की राह, है अभी लम्बी


आतंकी कसाब को फांसी दिए जाने के बाद पूरे देश में खुशी की लहर दौड़ गई है....मुंबई की विशेष कोर्ट के इस फैसले से ना सिर्फ मुंबई हमलों के पीड़ितों को इंसाफ मिला है बल्कि... इस फैसले ने एक बार फिर ये जता दिया है कि भारत की ओर आंख उठाकर देखने वाले को बख्शा नहीं जाएगा.....कसाब को सज़ा तो दे दी गई है लेकिन भारत की कानून व्यवस्था की लंबी प्रक्रिया की वजह से इस फैसले को अमल में लाने में अभी काफी लंबा वक्त है....भारत की न्याय व्यवस्था के अनुसार जब किसी दोषी को सज़ा सुनाई जाती है तब दोषी को ये हक है कि वो अपनी सज़ा पर दुबारा सुनवाई के लिए हाईकोर्ट में अपील करे....लेकिन मौत की सज़ा के मामले में नियम थोड़े अलग है..इस मामले में ट्रायल कोर्ट को ही केस के कागज़ात और फैसले की कॉपी हाईकोर्ट को भेजनी पड़ती है....कसाब के मामले में भी विशेष अदालत को इसी प्रक्रिया से गुज़रना पड़ेगा...अगर इस ममाले में हाईकोर्ट कसाब की सज़ा को कायम रखता है तो फिर कसाब को ये हक है कि वो इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाए.....अगर सुप्रीम कोर्ट भी इस फैसले को बरकरार रखती है तो कसाब के लिए एक और दरबार खुला है....वो दरबार है देश की राष्ट्रपति का दरबार.....आमतौर पर राष्ट्रपति के पास भेजी गई ऐसी दया याचिका पहले गृहमंत्रालय के पास पूरी रिपोर्ट तैयार किए जाने के लिए भेजी जाती है....रिपोर्ट मिलने के बाद ही राष्ट्रपति दया याचिका पर गौर करेंगी....हालांकि राष्ट्रपति के पास भेजी गई ऐसी दया याचिका को निपटाने के लिए कोई निर्धारित समय सीमा नहीं होती....इस वजह से इस पूरी प्रक्रिया में काफी वक्त लग सकता है...

हत्यारे को फांसी



17 महिनों से इंसाफ की राह तकती मुंबई को आखिरकार इंसाफ मिल ही गया…लश्कर-ए-तैयबा के जिन आतंकियों ने पूरी मुंबई को अपने आतंक से झिकझोड़कर रख दिया था उनमें से एक था कसाब.... आखिरकार उसे अब सज़ा दे दी गई...कसाब को जहां 4 मामलों में फांसी की सज़ा सुनाई गई है वहीं दूसरी ओर 6 मामलों में उम्रकैद की सज़ा दी गई है...कसाब पर ना सिर्फ कई लोगों की हत्या का दोष है बल्कि भारत के खिलाफ जंग छेड़ने का भी दोष है....
26/11 हमले से मुंबई को दहलाने वाले आतंकियों में अजमल आमिर कसाब ही एकमात्र ऐसा आतंकी है जिसे सुरक्षाबलों ने जिंदा पकड़ने में कामयाबी हासिल की थी...हालांकि गिरफ्तारी के बाद आरोपी कसाब के केस की सुनवाई कई नाटकीय मोड़ लेती हुई एक लंबे न्याय प्रक्रिया से गुजरी....इस लंबी न्याय प्रक्रिया से गुजरते हुए आखिरकार इस केस का आखिरी पड़ाव आ ही गया...इस आखिरी पड़ाव पर पहुंचकर 26/11 मुंबई हमले के आरोपी कसाब को दोषी करार देते हुए सज़ा सुना दी गई है....कसाब को सज़ा सुनाए जाने से ना सिर्फ देश के लोगों को खुशी है बल्कि मुंबई पुलिस भी इस सज़ा से काफी खुश है.....
पाकिस्तानी नागरिक कसाब का फरीदकोट से मुंबई जेल तक का सफर काफी दिलचस्प रहा....2005 में झगड़ा करने के बाद घर से भागने वाला कसाब अपने दोस्तों के साथ मिलकर छोटी छोटी आपराधिक वारदातों को अंजाम देने लगा...2007 में जब कसाब रावलपिंडी में हथियार खरीद रहा था तब कसाब की मुलाकात हुई आतंकी संगठन ज़मात-उल-दावा के सदस्यों से....इस मुलाकात के बाद कसाब जुड़ गया इस आतंकी संगठन से...इसके बाद शुरू हुई कसाब को एक खतरनाक आतंकी बनाने की कहानी....कसाब को आतंकवाद के सांचे में ढालने के लिए ट्रेनिंग के कड़े चरणों से गुजारा गया....इस कड़ी ट्रेनिंग से गुजरने के बाद छोटी छोटी आपराधिक वारदातों को अंजाम देने वाला कसाब बन गया एक खतरनाक आतंकवादी...इसके बाद कसाब को सौंपी गई एक खौफनाक आतंकी जिम्मेदारी.....इस जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए 26 नवंबर, 2008 को कसाब ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर धावा बोला भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई पर....इस आतंकी हमले से ना सिर्फ मुंबई बल्कि पूरी दुनिया दहल उठी....हालांकि 26/11 हमले में कसाब महज एक मोहरा था....इस खूनी खेल के असली खिलाड़ी तो अभी भी पाकिस्तान में महफूज़ छुपे हैं...कसाब को सज़ा मिलने से ना सिर्फ हमले के पीड़ितों को इंसाफ मिला है बल्कि पूरे भारत को इंसाफ मिला है...हालांकि कसाब को दी गई सज़ा देश के जख्मों पर लगाया गया महज़ एक मरहम है....नासूर बन चुके आतंकवाद के इस जख्म का असली इलाज तो तब होगा जब मुंबई हमले के असली दोषियों को सज़ा मिलेगी.....

Monday, May 3, 2010

17 महिनों बाद दोषी करार




26 नवंबर 2008 को मुंबई के साथ साथ पूरी दुनिया को आतंकी हमले से दहलाने वाले अजमल कसाब को अदालत ने दोषी करार दे दिया है.....मुंबई की स्पेशल कोर्ट में जब जज कसाब का फैसला पढ़ रहे थें तब कसाब सिर झुकाए जज के फैसले को सुन रहा था...हालांकि लश्कर-ए-तैएबा के इस आतंकी पर 166 लोगों को मारने का आरोप लगाया गया था लेकिन कसाब को इनमें से 72 लोगों की हत्या का दोषी करार दिया गया है.....इसके अलावा कसाब को भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने का भी दोषी करार दिया गया है.... 113 मिनट तक चली कोर्ट की कार्रवाई में कसाब को दोषी करार दिए जाने के बाद कसाब को कल सज़ा सुनाए जाने का फैसला किया गया है....17 महिनों तक चली इस केस की सुनवाई का फैसला 1522 पन्नों में लिखा गया है....26/11 मुंबई हमले के इस केस में कसाब को दोषी करार दिए जाने में बैलिस्टिक रिपोर्ट ने सबसे अहम भूमिका निभाई....

अदालत ने अपना फैसला सुनाते हुए मुंबई हमले को पूरी तरह एक विदेशी हमला करार दिया...इसके साथ हीं कसाब की मदद करने के आरोप में गिरफ्तार किए गए फहीम और सबाउद्दीन को बरी कर दिया गया है कसाब को दोषी करार दिए जाने के बाद सारे देशवासियों को अब कसाब के सज़ा का इंतजार है.....ना सिर्फ मुंबई हमले के पीड़ित बल्कि पूरा देश कसाब के सज़ा सुनाए जाने का इंतजार कर रहा है.....कसाब को चाहे जो भी सज़ा मिले लेकिन देश को असली इंसाफ तो तभी मिलेगा जब खौफनाक और दिल दहलाने वाले मुंबई हमले के असली साजिशकर्ताओं को सज़ा मिलेगी जो आज ना सिर्फ पुलिस की गिरफ्त से दूर हैं बल्कि पाकिस्तान में महफूज़ भी छुपे है.....

Thursday, April 15, 2010

उम्मीदों को झटका पर हौसले बरकरार



उल्टी गिनती के साथ अंतरिक्ष अभियान में भारत के सबसे बड़े गौरव GSLV D3 रॉकेट ने श्रीहरिकोटा के स्पेस सेंटर से अपनी उड़ान भरी...शुरूआती दो चरणों में सब कुछ ठीक ठाक चलता रहा लेकिन अगले चरण में अचानक हीं रॉकेट कांपने लगा और इसे कंट्रोल कर रहे इसरो के वैज्ञानिकों को इसके आंकड़े मिलने बंद हो गए...अंतरिक्ष की ओर उड़ान भरता ये रॉकेट अपना रास्ता भटक गया...रॉकेट से संपर्क टूटते ही इसरो के वैज्ञानिकों की 18 साल की मेहनत पर पानी फिर गया...वैज्ञानिकों का कहना है कि उड़ान के दौरान रॉकेट के दो छोटे इंजनों ने अचानक काम करना बंद कर दिया जिसकी वजह से ये प्रक्षेपण असफल हो गया..
GSLV D3 रॉकेट की लांचिंग भारत के लिए ना सिर्फ गौरव की बात थी बल्कि इस लांचिंग के बाद भारत उन देशों की लिस्ट में भी शामिल हो जाता जो अपने उपग्रह बिना किसी विदेशी रॉकेट की मदद से अंतरिक्ष में स्थापित करते हैं....GSLV D3 भारत का पहला रॉकेट है जिसे क्रायोजेनिक इंजन की मदद से अंतरिक्ष में भेजा जाना था...क्रायोजेनिक इंजन असल में एक ऐसी तकनिक से बनाई जाती है जिसमें इंधन के तौर पर लिक्विड ऑक्सिजन और लिक्विड हाईड्रोकारबन का इस्तेमाल किया जाता है....हालांकि भारत ने इस इंजन को बनाने की तकनिक रूस से खरीदनी चाही थी लेकिन अमेरिका की दवाब की वजह से रूस ने इंकार कर दिया था....इस इंकार के बाद भारत ने खुद इस इंजन को बनाने में कामयाबी हासिल की....क्रायोजेनिक इंजन बनाने की तकनीक अब तक भारत के अलावा केवल पांच देशों के पास ही है....

इसरो के वैज्ञानिकों की 18 साल की ये मेहनत अगर सफल हो जाती तो भारत को अपने जीसैट-4 उपग्रह को अंतरिक्ष में स्थापित करने में कामयाबी मिल जाती...अंतरिक्ष में इस उपग्रह के स्थापित होने से ना सिर्फ भारत के टेलिकम्युनिकेशन में सुधार आता बल्कि देश के जीपीएस सिस्टम को भी बेहतर बनाने में मदद मिलती....इसके अलावा टीवी कवरेज की क्वालिटी को सुधारने में भी कामयाबी हासिल की जा सकती थी....बरहाल इस प्रक्षेपण के असफल हो जाने से भारतीय वैज्ञानिकों के बीच मायूसी जरूर छा गई है....लेकिन इसके बावजूद भारतीय वैज्ञानिकों ने अपना मनोबल कायम रखते हुए ये ऐलान किया है कि तकनिकी खामियों को दूर करने के बाद एक साल बाद दुबारा इस प्रक्षेपण को सफल बनाने की कोशिश की जाएगी.....उम्मीद है अपनी अगली कोशिश में भारतीय वैज्ञानिक दुनिया को ये जताने में जरूर सफल हो सकेगे कि भारत किसी से भी कम नहीं है....

Thursday, April 8, 2010

पुलिस की लापरवाही का एक नायाब नमुना...

दिल्ली के अक्षरधाम के पास सड़क पर एक बीएमडब्लू कार 62 साल के बुजुर्ग ओम दत्त के लिए उस वक्त यमदूत बन गई जब ओम दत्त सैर पर निकले....एक बाइक को ओवरटेक करने के चक्कर में इस कार ने अपना संतुलन खो दिया.....संतुलन खोते ही इस कार ने सड़क किनारे चल रहे ओम दत्त को टक्कर मार दी....ओम दत्त कार चालक की लापरवाही के शिकार तो हुए ही इसके साथ ही पुलिस ने भी इंसानियत को ताक पर रखते हुए ओम दत्त को सड़क पर तड़पता छोड़ आरोपियों को पकड़ने में लग गई....प्रत्यक्षदर्शियों को कहना है कि हादसे का शिकार होने के बाद भी ओम दत्त जिंदा थे पर पुलिस ने उन्हें अस्पताल पहुंचाने की कोई कोशिश नहीं की....लोगों का आरोप है कि पुलिस की लापरवाही की वजह से बुजुर्ग ओम दत्त को अपनी जान गंवानी पड़ी.....
जब पुलिस से उनकी लापरवाही का जवाब मांगा गया तब बड़ी चालाकी के साथ पुलिस ने जांच की बात कह कर मामले को टाल दिया... इस घटना के बाद पुलिस की लापरवाही से नाराज़ लोगों ने ना सिर्फ पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करते हुए जमकर हंगामा किया बल्कि एनएच 24 पर जाम भी लगा दिया.....पुलिस ने इस मामले में कार चालक समेत 3 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया ..हालांकि इस हादसे के बाद ये सवाल जरूर खड़ा हो गया है कि क्या घायल को तड़पता छोड़ पुलिस का काम महज़ अपराधियों को पकड़ना है...? अगर ऐसा है तो क्या कहीं ना कहीं पुलिस घायल की मौत की जिम्मेवार नहीं है.....? आखिर ऐसा क्या था जो पुलिस को घायल बुजुर्ग को अस्पताल नहीं पहुंचा पाई..? जहां पुलिस को घायल की मदद करनी चाहिए थी वहां आखिर क्यों पुलिस आरोपियों को थाने ले जाने के लिए उत्सुक थी...?

Sunday, March 28, 2010

और कितनी बातों से अनजान हैं आप...?


हमारी दिल्ली सरकार यूं तो पहले हीं जनता के मर्म से अनजान थी लेकिन अब तो वो इन बातों से भी अनजान रहने लगी है कि जिस कार्यक्रम में वो जा रही हैं वहां और किन दूसरी हस्तियों को बुलाया गया है....चलिए एक पल के लिए ये मान भी लिया जाए कि उन्हें ये नहीं पता हो...लेकिन क्या जिस कार्यक्रम में राज्य सरकार की भी भागीदारी हो उस कार्यक्रम में आने वाले हस्तियों के बारे में खुद राज्य की मुख्यमंत्री को भी ना पता हो...., और वो भी तब जब किसी हस्ती को कार्यक्रम का ब्रैंड अम्बेसडर बनाया गया हो....? ऐसा हीं कुछ हुआ 27 मार्च,10 को जब अर्थ ऑवर के दौरान दिल्ली में आयोजित किए गए एक कार्यक्रम में जब कार्यक्रम के ब्रैंड अम्बेसडर अभिषेक बच्चन के संदेश को दिखाने की जगह पिछले साल के ब्रैंड अम्बेसडर आमिर के संदेश को दिखाया गया.....यही नहीं बल्कि अचानक इस कार्यक्रम से अभिषेक के संदेश के साथ साथ अभिषेक के पोस्टरों को भी हटवा दिया गया....और जब बाद में इस बात का जवाब मुख्यमंत्री से मांगा गया तो मुख्यमंत्री जी ने बड़ी शालिनता से जवाब देते हुए कहा कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि अभिषेक बच्चन इस कार्यक्रम के ब्रैंड अम्बेसडर थें.....
दिल्ली की भोली-भाली मुख्यमंत्री शीला दीक्षित शायद जनता को बेवकूफ समझती हैं तभी तो जब कांग्रेस और बच्चन परिवार की कड़वाहट सामने आई तो शीला जी ने अपना दामन पाक साफ बताने के चक्कर में चालाकी दिखाते हुए बड़ी सफाई से कह दिया कि उन्हें अभिषेक के ब्रैंड अम्बेसडर होने की खबर नहीं थी....लेकिन शीला जी हम आपको याद दिला दें कि इसी महिने के शुरूआत में दिल्ली में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था जिसमें अभिषेक बच्चन बतौर ब्रैंड अम्बेसडर दिल्ली वासियों से अर्थ ऑवर के दौरान बिजली बंद रखने के लिए अपिल कर रहे थे और सबसे अहम बात ये कि उस कार्यक्रम में मंच पर आप भी अभिषेक के साथ दिल्ली वासियों से यही अपिल कर रही थीं......क्या तब भी अपको ये नहीं पता था कि अभिषेक उस कार्यक्रम में वहां क्यों मौजुद थें....?

Tuesday, March 23, 2010

शहादत की याद



२३ मार्च, भारतीये इतिहास का वो दिन जिस दिन देश के तीन बहादुर सिपाहियों को अंग्रेजों ने फांसी दे दी और वो तीन देश के बहादुर सिपाही हैं, शहीद भगत सिंह, शहीद राजगुरु और शहीद सुखदेव..... वही तीन क्रन्तिकारी जिन्होंने अपनी सारी खुशियाँ त्याग कर अपनी पूरी जिन्दगी अपने देश के नाम कर दी, इस उम्मीद में की शायद उनकी शहादत उनके वतन को आज़ादी दिलाने में मदद करे। फिर एक दिन उनकी शहादत रंग लायी और हमारा वतन आज़ाद हो गया । आज़ादी के रूप में हिंदुस्तान को एक नयी जिंदगी मिली । फिर क्या था ये आज़ाद परिंदा उड़ चला दूर तक फैले फलक में । आज इस परिंदे ने काफी ऊँचाई छू ली है लेकिन विडम्बना ये है की शायद आज ये भूल गया है कि इसकी ये आज़ादी किसी के बलिदान के बाद मिली है । तो क्या बलिदान देने वाले आज इतना भी हक नहीं रखते कि उनकी शाहदत कम से कम याद रखी जाये ? कहते हैं ..........


" शहीदों की चिताओं पर


लगेगें हर बरस मेले


वतन पर मिटने वालों का


यही बाकि निशान होगा "


पर अब ये लाईने शायद किताबों के पन्नों पर ही रह गयीं है तभी तो हम अपनी जिंदगी की दौड़ में इतने खो गए हैं कि उन्हें याद करने का भी वक़्त नहीं है जिनकी वजह से आज हम आज़ाद वतन में सांसें ले रहे हैं । एक तरफ जहाँ सरकार ने मात्र एक छोटा सा विज्ञापन देकर अपना फ़र्ज़ पूरा करती नज़र आई वही दूसरी तरफ अखबार वाले भी अखबार के एक कोने में विज्ञापन को छापकर अपने उत्तरदायित्व से मुक्त हो गएँ । इस विज्ञापन का भी सफ़र पहले पन्ने से शुरू होकर आज आखरी पन्ने तक पहुँच गया है। किसी चैनल ने याद भी किया तो बड़ी मुश्किल से अपने टाइम स्लॉट से महज़ कुछ मिनट ही निकाल कर दियें क्योंकि उनका ये प्रोडक्ट बिकता नहीं न । और बिकता नहीं तो फिर टीआरपी ऊपर कैसे जाती ....... खैर देशभक्तों की देशभक्ति तो तब और निखर कर सामने आई जब पंजाब में कुछ देशभक्तों ने एक समारोह आयोजित कर हाथों में तिरंगा लहराते हुए शहीदों को याद तो किया लेकिन समारोह ख़त्म होने पर उनकी असली देशभक्ति सामने आई जब उनके हाथों के तिरंगे ज़मीन पर धुल फांकते नज़र आयें ...... वतन की शान टुकड़ों में कुचली ज़मीन पर बिखरी अपनी आखिरी साँसे ले रही थी । आज लोग न सिर्फ इन शहीदों की शहादत भूल गएँ बल्कि लोगों के लिए इन शहीदों की शहादत मात्र एक मजाक बन कर रह गयी है.....

Thursday, March 18, 2010

रेंगती जिन्दगी







एक तो गरीबी.. उसके उपर से मंहगाई की मार....ऐसे में इस माहौल में जिंदगी तलाशने को मजबूर हैं ये गरीब....गरीबी और बदहाली में जीने को मजबूर इन लोगों को कभी तो रोटी नसीब हो जाती है लेकिन कभी भूखे पेट हीं सोना पड़ता है.....हालांकि सरकार तो दम भरती है इन गरीबों के उत्थान का... पर सरकार की इस दलील में कितना दम है ये इन गरीबों के हालात बखुबी बयां कर रहे हैं......अब तो हाल ये है कि सालों से प्रशासन की मदद की उम्मीद की आस रखने वाले इन लोगों का विश्वास हीं प्रशासन से उठ गया है..... दिन-ब-दिन बढ़ती महंगाई ने ना सिर्फ गरीबी रेखा से नीचे रह रहे लोगों के हालात को बद से बदतर बनाया है बल्कि आम जनता के आंखों में भी आंसू ला दिए हैं..... आए दिन कभी चीनी और दुध के दाम बढ़ रहे हैं तो कभी पेट्रोल और डीजल के दाम...ऐसे में आम जनता राहत के लिए किए गए प्रशासन के तमाम वादों के बीच खुद को ठगा सा महसूस कर रही है..... एक ओर जहां महंगाई और गरीबी के बीच आम आदमी की जिंदगी रेंगने को मजबूर है वहीं सरकार इन बातों से बेखबर कुंभकर्णी नींद लेने में व्यस्त है.....

Wednesday, March 17, 2010

माया की माला में दुर्लभ फूल





माया की माला में लगे हैं दुर्लभ फूल....जी हां ये बयान बिल्लकुल सच है.....चौक गए ना...!!!!!
ये बयान है बीएसपी का...वही बीएसपी जिसकी कमान संभाल रखी है बहन जी ने...लखनऊ में बसपा की महारैली के दौरान जब पार्टी कार्यकर्ताओं ने “महामहिम माया” को माला पहनाया तो चारो ओर माला की जबरदस्त चर्चा छिड़ गई...ये चर्चा इतनी गूंजी कि इसकी गूंज ना सिर्फ विधानसभा में सुनाई दी बल्कि इस चर्चा ने विधानसभा में हंगामा का रूप भी अख्तियार कर लिया.....और तब बचाव खेमे के नेताओं का ये एतिहासिक बयान आया कि बहन जी के गले में डाली गई स्वागत माला नोटों की नहीं बल्कि दुर्लभ फूलों से बनाई गई थी.....सच हीं तो है.....ये माला आखिरकार “दुर्लभ फूलों” से हीं तो बनी थी.....उन्हीं “दुर्लभ फूलों ” से जो आम जनता के लिए सच में दुर्लभ है....ये वही दुर्लभ फूल हैं जो आम आदमी के खून पसीने की मेहनत के बाद खिल कर आते हैं लेकिन इसके बावजूद आम जनता का इस पर कोई हक नहीं है.... आखिर आम जनता के लिए हज़ार-हज़ार के ये नोट दुर्लभ फूल हीं तो हैं जो केवल मायावती सरिखे महामहिमों की हीं पहुंच में हैं....महंगाई के इस दौर में आम आदमी के लिए तो इन फूलों के दर्शन भी दुर्लभ हैं.....जिन फूलों पर जनता का हक होना चाहिए था और जिसका इस्तेमाल समाज के विकास के लिए करना चाहिए था उन्हीं फूलों को दुर्लभ बताकर हार गले में एक बार नहीं बल्कि दो दो बार सजाकर जनता के इन सेवकों ने जनता को ये एहसास जरूर करा दिया है कि उन्हें जनता की कितनी फिक्र है....दलितों के उत्थान का दम भरने वाली माया के गले में सजी नोटों की ये माला आम जनता को चीख चीख कर जरूर चिढ़ा रही है कि ये दुर्लभ फूल उनके लिए सच में दुर्लभ है....