आतंकी कसाब को फांसी दिए जाने के बाद पूरे देश में खुशी की लहर दौड़ गई है....मुंबई की विशेष कोर्ट के इस फैसले से ना सिर्फ मुंबई हमलों के पीड़ितों को इंसाफ मिला है बल्कि... इस फैसले ने एक बार फिर ये जता दिया है कि भारत की ओर आंख उठाकर देखने वाले को बख्शा नहीं जाएगा.....कसाब को सज़ा तो दे दी गई है लेकिन भारत की कानून व्यवस्था की लंबी प्रक्रिया की वजह से इस फैसले को अमल में लाने में अभी काफी लंबा वक्त है....भारत की न्याय व्यवस्था के अनुसार जब किसी दोषी को सज़ा सुनाई जाती है तब दोषी को ये हक है कि वो अपनी सज़ा पर दुबारा सुनवाई के लिए हाईकोर्ट में अपील करे....लेकिन मौत की सज़ा के मामले में नियम थोड़े अलग है..इस मामले में ट्रायल कोर्ट को ही केस के कागज़ात और फैसले की कॉपी हाईकोर्ट को भेजनी पड़ती है....कसाब के मामले में भी विशेष अदालत को इसी प्रक्रिया से गुज़रना पड़ेगा...अगर इस ममाले में हाईकोर्ट कसाब की सज़ा को कायम रखता है तो फिर कसाब को ये हक है कि वो इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाए.....अगर सुप्रीम कोर्ट भी इस फैसले को बरकरार रखती है तो कसाब के लिए एक और दरबार खुला है....वो दरबार है देश की राष्ट्रपति का दरबार.....आमतौर पर राष्ट्रपति के पास भेजी गई ऐसी दया याचिका पहले गृहमंत्रालय के पास पूरी रिपोर्ट तैयार किए जाने के लिए भेजी जाती है....रिपोर्ट मिलने के बाद ही राष्ट्रपति दया याचिका पर गौर करेंगी....हालांकि राष्ट्रपति के पास भेजी गई ऐसी दया याचिका को निपटाने के लिए कोई निर्धारित समय सीमा नहीं होती....इस वजह से इस पूरी प्रक्रिया में काफी वक्त लग सकता है...
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बिल्कुल सही कहा आपने, भारत की कानून व्यवस्था की लंबी प्रक्रिया की वजह से इस फैसले को अमल में लाने में अभी काफी लंबा वक्त है। काश ऐसा होता कि पहले पल सजा सुनावें और दूसरे ही पल सजा को अमल में लावें। ऐसा कब होगा ---- शायद ।
ReplyDeleteसही कहा
ReplyDeleteन्याय और सजा की राह लम्बी है.