Sunday, November 25, 2012
आतंक के जख्म का हिसाब कितना ?
Thursday, January 13, 2011
सीबीआई की नाकाम तस्वीर
देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी की नाकाम है...मजबूर है....लाचार है.....हाल ही की बात करें तो....इतने बड़े घाटाले और देश की सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री पर मानों सीबीआई ने घुटने टेक दिया हैं. च्वग घोटाले केस में आरोपी जयचंद्रन और टी एस दरबारी की गिरफ़्तारी के ६० दिनों बाद भी सीबीआई इनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल नहीं कर पाई...सीबीआई की इस नाकामी का नतीज़ा ये रहा कि दिल्ली हाईकोर्ट को सीबीआई को फटकारते हुए मजबूरन इन आरोपियों को ज़मानत देनी पड़ी...हालांकि सीबीआई की ये पहली नाकामी नहीं है जब देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी ने देश के कानून-व्यवस्था का सिर शर्म से झुकाया हो... आरूषि मर्डर केस में भी सीबीआई आरोपी राजेश तलवार के खिलाफ चार्जशीट दाखिन नहीं कर पाई जिसकी वजह से कोर्ट को मजबूरन राजेश की याचिका स्वीकार करते हुए केस की क्लोज़र रिपोर्ट तलवार को सौंपनी पड़ी...बहरहाल इन सभी अहम मामलों में लगातार एक के बाद एक सामने आती सीबीआई की नाकामी की इस सूची ने देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी पर से लोगों का भरोसा उठा दिया है...सीबीआई की इन नाकामियों ने सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या सीबीआई जैसी बड़ी जांच एजेंसी भी अपराधियों की पहुंच के आगे लाचार है.. या फिर सीबीआई की इस लाचारी के पीछे कोई काला सच छुपा है....
Wednesday, December 8, 2010
"Lets feel the pain" की सच्चाई
“Lets feel the pain”……वाराणसी धमाके के बाद आतंकी संगठन इंडियन मुज़ाहिद्दीन की ओर से भेजी गई मेल के वो शब्द जो साफ तौर पर आतंकियों के नापाक मनसूबे की ओर इशारा करती है...इस मेल के जरिए इन आतंकियों ने तो ये जताने की कोशिश की है कि उनके साथ बहुत बड़ी नाइंसाफी हुई है और वो इसका बदला लेने चाहते हैं...लेकिन क्या आतंकियों के पास इस बात का जवाब है कि वाराणसी में बम धमाका कर उन्होंने किससे बदला लिया है...? जो लोग इस धमाके में घायल हुए और जो इस धमाके के बाद अपने परिजनों से बिछड़ गएं क्या वो इन आतंकियों के दोषी हैं..? क्या 2 साल की मासूम स्वास्तिका उनकी गुनहगार थी जिसने दुनिया में महज़ दो साल पहले ही कदम रखा था....जिसे इतना भी नहीं पता था कि दुनिया क्या होती है, दुनिया कहते किसे हैं, धर्म, जात-पात क्या होता है... इस नन्हीं सी जान को मारकर आतंकियों के दिल को ठंडक मिल गई..? क्या ये मासूम गई थी उनकी मस्जिद तोड़ने ? या फिर वाराणसी के घाट पर आरती करते वो तमाम लोग मस्जिद पर धावा बोलने गएं थें...? क्या मस्जिद के विध्वंस के असली गुनहगार ये लोग हीं थें जिन्हें घायलकर और धमाके में उड़ाने की साजिशकर इन आतंकियों को इंसाफ मिल गया...?
इन सब के बीच ये दहशतगर्द ये भूल गएं कि जिस दर्द का एहसास वो कराना चाहते थें वो दर्द किसी एक मज़हब के लोगों ने नहीं बल्कि पूरे हिन्दूस्तान के लोगों ने महसूस किया...चाहे वो हिंदू हो, मुस्लिम हो, सिख हो, इसाई हो या फिर कोई और मज़हबी...देश के सौहार्द तोड़ने की कोशिश करने वाले ये दहशतगर्द ये अच्छी तरह से जानते हैं कि धर्म की आड़ में वो जिन लोगों को ये दर्द महसूस कराना चाहते हैं उन लोगों ने बाबरी विध्वंस के दर्द को भी उसी तरह महसूस किया था जितना कि वो आज वनारस धमाके के दर्द को महसूस कर रहे हैं...लेकिन इस सच्चाई को जानते हुए भी आतंकियों ने इस घटना को अंज़ाम दिया...वजह बिल्कुल साफ है...दरअसल इन आतंकियों का न तो कोई धर्म है, न कोई मज़हब और न ही ये कोई धर्म युद्ध लड़ रहे हैं...इनके नापाक मंसूबे तो बस दहशत फैलाना है...अगर ये आतंकी सच में कोई नेक काम कर रहे होते तो ये पाकिस्तान को आए दिन धमाकों के ज़ख़्म न देते...ये दहशतगर्द अपने नापाक इरादों और बेतुके दलीलों से लोगों को महज़ गुमराह कर रहें हैं....
Saturday, November 20, 2010
वादियों में रंग बिखेरता पतझड़
खाली, सूनी टहनियां और सूखे, बेजान पत्ते...इन तस्वीरों को देखकर मौसम की पहचान करना कोई मुश्किल बात नहीं है...इन सूने पड़े उदास पेड़ों को देखकर कोई भी आसनी से अंदाज़ा लगा सकता है कि ये निशानी पतझड़ की है...वो पतझड़ जिसके आते हीं पेड़ों से फूल नदारद हो जाते हैं और हरे-भरे पत्ते टहनियों से अलग होकर ज़मीन की ओर अपने आखिरी पड़ाव की तरफ बढ़ चलते हैं...इस मौसम के आते हीं हर वक्त गुलज़ार रहने वाले पेड़ों पर विरानी छा जाती है...पेड़ों की इस विरानी से माहोल में भी उदासी भर जाती है...लेकिन कश्मीर की इन वादियों के लिए तो पतझड़ का मतलब ही कुछ और है...कहते हैं धरती के इस स्वर्ग पर पतझड़ जब अपने कदम रखता है तो ये चेतावनी होती है आने वाले उस सर्द मौसम की जिसकी जबर्दस्त ठंडक हर चीज को कपा कर रख देती है...लेकिन घाटी में दस्तक देता ये पतझड़ अपने साथ इस चेतावनी के अलावा भी कुछ और भी लाता है...जी हैं ये पतझड़ जब कश्मीर की वादियों में कदम रखता है तो पूरी वादी एक अनोखी खूबसूरती के साथ खिल उठती है...ऐसा लगता है मानो धरती के इस स्वर्ग को किसी ने पारस पत्थर से छू दिया हो...वादी का हर कोने सुनहरे रंग में रंग जाता है...पतझड़ के इस मौसम में अपने आखिरी पड़ाव पर पहुंचकर चिनार के ये सूखते पत्ते भी वादियों में कई रंग बिखेर देते हैं...कश्मीर में पतझड़ की इस अनोखी खुबसूरती को देखने वाला हर इंसान इस अनुपम खबुसूरती का कायल हो जाता है और दुनिया से ये गुज़ारिश करता है कि वो प्रकृति की इस अनुपम छठा का एक बार ज़रूर दीदार करे...
कश्मीर में पतझड़ का ये मौसम सितंबर से लेकर दिसंबर के महिने तक रहता है...इस दौरान ये मौसम न सिर्फ चिनार के पत्तों में सुनहरा रंग भरता है बल्कि पूरी वादी पर अपनी रंगीन कूची चलकर एक मनमोहक तस्वीर भी उकेरता है...वादियों में पतझड़ की उकेरी ये तस्वीर इतनी खूबसूरत होती है कि पर्यटक सहज ही इस ओर खींचे चले आते हैं...कश्मीर में प्रकृति के इस अनोखे रंग को देखकर दिल खुद-ब-खुद इस बात को दुहराने लगता है कि अगर धरती पर कहीं स्वर्ग है तो वो इन्हीं खूबसूरत वादियों में है जहां पतझड़ भी आकर इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा जाता है....